Saturday, December 5, 2009

जब ये शुरुआत हुई थी तब हममें से किसी को भी नहीं पता था कि हमें किस ओर जाना है...हर किसी ने हमसे पूछा कि ..आखिर युवा हिंदुस्तानी ही क्यों.... हम क्या करेंगे...कैसे करेंगे..और हम अलग कैसे हैं.....तब शायद इसका जवाब हममें से किसी के पास नहीं था...शायद इसलिए कि जर्नलिस्ट होने के नाते हमारी आदत सिर्फ सवाल करना था ...जवाब देना नहीं...लेकिन अब इस सवाल का जवाब हमारे पास है।

अब हमें पता है कि हमें करना क्या है...हालांकि ये तो पहले से ही हमारे दिल के किसी कोने में था कि हम चाहते क्या हैं....लेकिन अब हमारी सोच को शब्दों और भावनाओं से बाहर निकालने का रास्ता हमें मिल चुका है। हमारी सोच वही है जो इस देश के पचास करोड़ युवा हिंदुस्तानी सोचते हैं...लेकिन कैसे इस रास्ते पर चलना है ये हममें से किसी को नहीं पता है।

रास्ता और मंज़िलें दोनों ही अब हमारे सामने है...मंज़िल है खुद को एक जिम्मेदार नागरिक बनाने की...और रास्ता है तिरंगा। जी हां...सुन कर अजीब लगता है लेकिन ये सच है...कि सिर्फ इन तीन रंगों में ही इतनी ताकत है जो हमें सही रास्ता दिखा सकते हैं। हम सभी ने ये तय किया है कि हम अपने साथ तिरंगे को हमेशा रखेंगे...जो शायद कहीं ना कहीं हमारी सोच को एक नई दिशा दे सकता है।

पहले तो हमें भी लगा कि एक तिरंगे को साथ रखने से क्या होगा....फिर हमने इसे अपने साथ रखना शुरु किया...just like a school badge....फिर धीरे धीरे इन तीन रंगों की ताकत का हमें अहसास होने लगा। यकीन मानिए इन तीन रंगों में कुछ बात तो ज़रूर है जो सोचने समझने के लिए मजबूर कर देती है। एक बार इन तीन रंगों की ताकत का अहसास हो गया तो फिर कदम खुद ब खुद सही रास्ते पर चल पड़ेगें।

एक वाकया याद आता है...बात कुछ दिनों पहले की है...मैं IIT, DELHI जा रहा था....IIT के ठीक पहले एक लाल बत्ती पडती है...रात का समय था ...मेरी कार थोड़ी स्पीड में थी..जब तक मैं लाल बत्ती पर पहुंचता बत्ती हरी हो गई..तो मैने राइट टर्न ले लिया....वहां पर एक कार पहले से खड़ी थी...उस कार वाले को लगा की मैने उसे साइड मारने की कोशिश की...लेकिन ऐसा था नहीं...बहरहाल...मैं अभी थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि उस कार वाले ने मेरी कार के ठीक आगे आकर अपनी स्पीड कम कर दी..जब मैं राइट जाता तो वो भी राइट हो जाता...और लेफ्ट जाता तो वो भी लेफ्ट में आने लगा....उस कार में एक लड़का था जो ड्राइव कर रहा था और दो लड़कियां बैठी हुई थीं....एक बार तो मुझे बहुत गुस्सा आया...मन किया की इसका तो ऐसा चालान करवा दूं कि साल भर से पहले गाड़ी ना छूटे..(जर्नलिस्ट होने की वजह से ताकत का गलत इस्तेमाल करना हमारी आदत जो बन चुकी है)...लेकिन फिर मेरा ध्यान मेरी शर्ट पर लगे तिरंगे पर गया....और फिर मैने जब उसे देखा तो उसके बचपने पर मुझे हंसी आने लगी। इसके बाद जो हुआ उसे वो बालक शायद ही कभी भूल पाएगा.....मुझे हंसता देख कर वो दोनों लड़किआं भी जो़र जो़र से हंसने लगीं...और उस बालक की शक्ल देखने लायक थी....फिर मैने कार उसके पास ले जाकर मुस्करा कर SORRY बोल दिया। .....चांस की बात थी कि वो भी IIT के ही स्टूडेंट थे...IIT में नेस्कैफे है जो 24 घंटे खुला रहता है ...मैं वहीं जा रहा था कुछ दोस्तों से मिलने के लिए। वो लोग भी वहीं पर जा रहे थे...मैं अभी अपने दोस्तों का इंतज़ार ही कर रहा था कि वो तीनों लोग मेरे पास आए...और उस लड़के ने मुझसे पूछा कि आप मेरे ऊपर हंसे क्यों..आपको तो गुस्सा करना चाहिए था....फिर मैने उसे बताया उन तीन रंगों की ताकत के बारे में...यकीन मानिए इसके बाद वो मेरा फैन बन गया...उसने ना सिर्फ मेरा नंबर लिया बल्कि अपनी गलती के लिए SORRY भी बोला....और वादा किया कि आज से वो भी हमेशा तिरंगा अपने साथ रखेगा। मुझे नहीं पता कि वो तिरंगा अपने साथ रखता है या नहीं...लेकिन उस दिन ही मुझे इन तीन रंगों के पीछे छिपे जज़्बे और इसकी असल ताकत का पता चला।

जानते हैं ये कुछ और नहीं...बल्कि कहीं ना कहीं हम सभी हिंदुस्तानियों को एक दूसरे से जोड़ता है। हमारे अंदर जिम्मेदारी का अहसास करवाता है....ये कुछ ऐसा ही जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता...इसे आपको खुद आज़माना होगा....

आज IIT कानपुर और बनारस में हमारे करीब 50 साथी अपने साथ तिरंगा carry कर रहे हैं....और लगभग हर किसी के साथ ऐसे ही अनुभव हो रहे हैं.....अगर मुझ पर यकीन नहीं तो एक बार आप खुद भी इसे आजमा कर देख सकते हैं..और अगर ऐसा ही आपके साथ भी होता है तो फिर इसी ब्लॉग पर अपने अनुभव हमारे साथ ज़रूर बांटिएगा....

हमें आपके शब्दों का इंतज़ार रहेगा।

नमस्ते।








2 comments:

  1. ur words are very encouraging.. surely it will help all of us! thank u fr sharing!!

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